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१९४७ के जख्म पुस्तक में राजीव शुकला ने भारत के विभाजन के दौरान हुए दर्दनाक घटनाओं और उसके प्रभाव को बारीकी से चित्रित किया है। यह पुस्तक विभाजन के समय की हिंसा, प्रवास, और धार्मिक संघर्षों की यादों को ताजगी से सामने लाती है। लेखक ने विभाजन के परिणामस्वरूप हुए सामाजिक, मानसिक और राजनीतिक नुकसान को उजागर किया है। साथ ही, उन्होंने उस दौर में बर्बरता, शरणार्थियों की पीड़ा और दोनों देशों में हुए सामाजिक बदलावों की गंभीरता को समझने की कोशिश की है। १९४७ के जख्म न केवल इतिहास की एक महत्वपूर्ण गाथा प्रस्तुत करती है, बल्कि यह उन अजनबी और अपारदर्शी घावों को भी दर्शाती है जो आज तक भारतीय समाज में महसूस किए जाते हैं।

1947 ke jakhm

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  • राजीव शुकला 

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राष्ट्रीय विचारांचा प्रचार आणि प्रसार या उद्देशाने शके १८९८, सन १९७६ मध्ये प्रकाशन संस्थेची स्थापना करण्यात आली. बालसाहित्य, संस्कारक्षम पुस्तके, सामाजिक, राष्ट्रीय, विज्ञान, शेती, पर्यावरण, योग, आरोग्य, संतसाहित्य, अर्थकारण, समरसता, चरित्रे,  कुटुंब प्रबोधन इत्यादी विषयावरील सुमारे ६५० ग्रंथ  आजवर भाविसाने प्रकाशित केले आहेत.

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