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धर्म, संप्रदाय, संप्रदायिकता मा. गो. वैद्य द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो धर्म, संप्रदाय और संप्रदायिकता के बीच के अंतर को स्पष्ट करती है। इस पुस्तक में लेखक ने धर्म को एक सार्वभौमिक और जीवन के सिद्धांतों से जुड़ी भावना के रूप में प्रस्तुत किया है, जबकि संप्रदाय और संप्रदायिकता को समाज में भेदभाव और संघर्ष की स्थिति के रूप में समझाया है। मा. गो. वैद्य ने यह दर्शाया है कि धर्म मानवता और एकता की ओर प्रेरित करता है, जबकि संप्रदायिकता समाज में विभाजन और असहमति उत्पन्न करती है। पुस्तक धर्म और संप्रदायिकता के प्रभाव पर विचार करती है और समाज में सद्भाव और एकता की आवश्यकता पर जोर देती है।

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  • मा. गो. वैद्य 

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राष्ट्रीय विचारांचा प्रचार आणि प्रसार या उद्देशाने शके १८९८, सन १९७६ मध्ये प्रकाशन संस्थेची स्थापना करण्यात आली. बालसाहित्य, संस्कारक्षम पुस्तके, सामाजिक, राष्ट्रीय, विज्ञान, शेती, पर्यावरण, योग, आरोग्य, संतसाहित्य, अर्थकारण, समरसता, चरित्रे,  कुटुंब प्रबोधन इत्यादी विषयावरील सुमारे ६५० ग्रंथ  आजवर भाविसाने प्रकाशित केले आहेत.

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