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शोधकर्ता कार्यकर्ता मुकुल कानिटकर द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो जीवन में शोध और कार्य को समान महत्व देने का संदेश देती है। इस पुस्तक में लेखक ने यह दिखाया है कि एक शोधकर्ता केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसे समाज में कार्यकर्ता के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। यह पुस्तक कार्यकर्ता और शोधकर्ता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर देती है, ताकि एक व्यक्ति न केवल विचारों और सिद्धांतों को समझे, बल्कि उन्हें समाज में लागू भी करे। मुकुल कानिटकर ने इस पुस्तक में यह भी बताया है कि शोध केवल अकादमिक क्षेत्र तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका उद्देश्य समाज की बेहतरी और राष्ट्र निर्माण में योगदान करना होना चाहिए।

shodhakarta kaaryakarta

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  • Mukul Kanitkar

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राष्ट्रीय विचारांचा प्रचार आणि प्रसार या उद्देशाने शके १८९८, सन १९७६ मध्ये प्रकाशन संस्थेची स्थापना करण्यात आली. बालसाहित्य, संस्कारक्षम पुस्तके, सामाजिक, राष्ट्रीय, विज्ञान, शेती, पर्यावरण, योग, आरोग्य, संतसाहित्य, अर्थकारण, समरसता, चरित्रे,  कुटुंब प्रबोधन इत्यादी विषयावरील सुमारे ६५० ग्रंथ  आजवर भाविसाने प्रकाशित केले आहेत.

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